Wednesday, August 24, 2011

my souller dear who stay in delhi kindly go and support anna anna

my soulledr ear who stay in delhi kindly go and support anna in RAMLILILA MAIDAN

THIS MESSAGE MADE BY CAVS PARIWAR ....... PRAKASH

Wednesday, November 4, 2009

मान गई महारानी......

आखिरकार राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मान गई । राज्य में नेता प्रतिपक्ष के पद से उन्होंने अपना इस्तीफा राजनाथ को दे ही दिया पिछले कुछ समय से राजस्थान में उनकी कुर्सी से विदाई का माहौल बना हुआ था, ...... परन्तु ख़राब स्वास्थ्य कारणों के चलते उनकी विदाई की खबरें दबकर रह गयी । .. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की साढ़े साती चलने के कारन महारानी की विदाई नही हो पायी। गौरतलब है पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाली भाजपा में अनुसासन हाल के दिनों में उसे अन्दर से कमजोर कर रहा है...पार्टी लंबे समय से अंदरूनी कलहो में उलझी रही जिस कारन राजस्थान में वसुंधरा की विदाई समय पर नही हो पायी।
...... यहाँ यह बताते चले वसुंधरा की विदाई का माहौल तो राज्य विधान सभा में भाजपा की हार के बाद ही बनना शुरू हो गया था परन्तु पार्टी हाई कमान लोक सभा चुनावो से पहले राजस्थान में कोई जोखिम उठाने के मूड में नही दिखाई दिया.............. लोक सभा चुनावो में पार्टी की करारी हार के बाद माथुर की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी गई ...पर आलाकमान वसुंधरा के अक्खड़ स्वभाव के चलते उनसे इस्तीफा लेने की जल्दी नही दिखा सका, ..साथ ही वसुंधरा को आडवानी का " फ्री हैण्ड" मिला हुआ था जिस कारण पार्टी का कोई बड़ा नेता उन्हें बाहर निकालने का साहस जुटाने में सफल नही हो सका। ..यही नही इस्तीफे की बात होने पर वसुंधरा के "दांडी मार्च " ने भी पार्टी आलाकमान का अमन चैन छीन लिया।
दरअसल महारानी पर लोक सबह चुनावो के बाद से इस्तीफे का दबाव बनना शुरू हो गया था॥ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खंडूरी ने जहाँ पाँच सीटो पर पार्टी की करारी हार के बाद अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर डाली वही महारानी हार के विषय में मीडिया में अपना मुहीम खोलने से बची रही ... पर केन्द्रीय स्तर पर वसुंधरा विरोधी लाबी कहाँ चुप बैठने वाली थी ... उन्होंने महारानी को राजस्थान से बेदखल कर ही दम लिया... आखिरकार वसुंधर की धुर विरोधी लोबी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ को साथ लेकर अनुशासन के डंडे पर महारानी की विदाई का पासा फैक दिया..... इससे आहत होकर महारानी ने राजनाथ से मिलने के बजाय आडवानी से मिलना ज्यादा मुनासिब समझा .....महारानी ने ओपचारिकता के तौर पर राजनाथ को अपना इस्तीफा भिजवा दिया.....
राजनाथ और महारानी के रिश्तो में खटास शुरू से रही है । ॥ राजस्थान में वसुंधरा के कार्य करने की शैली राजनाथ सिंह को शुरू से अखरती रही है ... लोक सभा चुनावो में राजस्थान में पार्टी की पराजय के बाद राजस्थान में वसुंधरा की राजनाथ से साथ अनबन और ज्यादा तेज हो गई.... उस समय पार्टी आलाकमान ने उनसे इस्तीफा देने को कहा था पर वसुंधरा के समर्थक विधायको की ताकत को देखकर वह भी हक्के बक्के रह गए... जब पानी सर से उपर बह गया तो "डेमेज कंट्रोल" के तहत राजस्थान में पार्टी ने वेंकैया नायडू को लगाया पर वह महारानी को इस्तीफे के लिए राजी नही कर पाये... जिसके चलते पार्टी ने राजस्थान की जिम्मेदारी सुषमा स्वराज के कंधो पर डाली... पिछले कुछ समय से वह भाजपा की संकटमोचक बनी हुई है... चाहे आडवानी के इस्तीफे का सवाल हो या फिर जसवंत की किताब पर बोलने का प्रश्न ॥ या फिर कलह से जूझती भाजपा का और ३ राज्यों के परिणामो में भाजपा की पराजय का प्रश्न उन्होंने बेबाक होकर इन सभी मसलो पर अपनी राय रखी है और अपनी सूझ बूझ को दिखाकर हर संकट का समाधान किया .... पर राजस्थान में महारानी को वह इस्तीफे के लिए नही मना सकी ....जिसके बाद राजस्थान में राजनाथ ने अपना "राम बाण " फैक दिया ... वसुंधरा पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होने के समाचार आने के बाद राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के पद से वसुंधरा को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा... इस्तीफे के बाद ४० विधायको के साथ किए गए प्रदर्शन में वसुंधरा ने कहा " जबरन इस्तीफा लेकर पार्टी हाई कमान ने उनको अपमानित किया है ... राजस्थान में अपने दम पर भाजपा की सरकार उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ बनाई " साथ ही उन्होंने विधायको से कहा आज नही तो कल हमारा होगा..... मैं राजस्थान की बेटी हूँ मेरी अर्थी भी यही से उठेगी........
राजस्थान में महारानी की नेता प्रतिपक्ष से विदाई के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर ज़ंग तेज हो गई है... वसुंधरा ने अपने पद से इस्तीफा तो दे दिया है परन्तु उनकी विदाई के बाद भाजपा में सर्वमान्य नेता के तौर पर किसी की ताजपोशी होना मुश्किल दिखाई देता है ...खबरे है महारानी इस पद पर अपनेव किसी आदमी को बैठना चाहती है परन्तु राजनाथ के करीबियों की माने तो नए नेता के चयन में वसुंधरा महारानी की एक नही चलने वाली...यही नही लोक सभा चुनाव में पीं ऍम इन वेटिंग के प्रत्याशी रहे आडवाणी की पार्टी में पकड़ कमजोर होती जा रही है .... सूत्रों की माने तो आडवाणी की संसद के शीतकालीन सत्र के बाद पार्टी से सम्मानजनक विदाई हो जायेगी ..... बताया जाता है मोहन भागवत ने आडवानी की विदाई के लिए २२ दिसम्बर तक डैड लाइन तय कर ली है ... यहाँ यह बताते चले संसद का यह सत्र २२ दिसम्बर को समाप्त हो रहा है ... इसी अवधि में आडवानी की सम्मानजनक विदाई होनी है साथ ही पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी खोजा जाना है ... यह सब देखते हुए कहा जा सकता है वसुंधरा की चमक आने वाले दिनों में फीकी पड़ सकती है ... साथ ही महारानी को आने वाले दिनों में नायडू, जेटली, सुषमा, अनंत की धमाचौकडी से जूझना है ... यह सब देखते हुई महारानी की राह में आगे कई शूल नजर आते है...
नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पाने के लिए इस समय पार्टी में कई नाम चल रहे है .... इस सूची में पहला नाम गुलाब चंद कटारिया का है.... कटारिया के नाम पर सभी नेता सहमत हो जायेंगे ऐसी आशा की जा सकती है .... उनकी उम्र के नेताओ को छोड़ दे तो राज्य में अन्य नेताओ को उनके नाम पर कोई ऐतराज नही है... साथ ही संघ भी उनके नाम को लेकर अपनी हामी भर देगा ऐसी आशा की जा सकती है क्युकि संघ से उनके मधुर रिश्ते रहे है..... राजस्थान में पार्टी में कलह बदने की सम्भावना को देखते हुए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके नाम पर अपनी मुहर लगा सकता है... कटारिया की छवि एक मिलनसार नेता की रही है साथ ही वह सबको साथ लेकर चलने की कला में सिद्धिहस्त माने जाते है ...वसुंधरा को भी उनके नाम से कोई दिक्कत नही होगी ....
दूसरा नाम वसुंधरा के विश्वास पात्र माने जाने वाले राजेंद्र राठोर का चल रहा है.... राठोर को समय समय पर महारानी के द्बारा आगे किया जाता रहा है .....अगर महारानी की नया नेता चुनने में चली तो राजेंद्र की किस्मत चमक सकती है .... वैसे भी अभी वह रेस के छुपे रुस्तम बने है...परन्तु उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत राजनीती की पिच पर अपरिपक्वता बनी हुई है ...यह कही उनकी राह का बड़ा रोड़ा न बन जाए...
तीसरा नाम घन श्याम तिवारी का है ... तिवारी वर्तमान में सदन में उपनेता के पड़ को संभाले हुए है...वर्तमान में वसुंधरा के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी उनके कंधो पर सोपी गई है ...विरोधियो को साथ लेकर चलने की कला तिवारी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है...परन्तु उनका ब्राहमण होना उनकी राह कठिन बना सकता है ... गौरतलब है इस समय पार्टी के अध्यक्ष पड़ पर राजस्थान में अरुण चतुर्वेदी काबिज है जो ख़ुद भी ब्राहमण है ... अगर वसुंधरा के बाद तिवारी को जिम्मेदारी सोपी गई तो दोनों पदों पर ब्राह्मण काबिज हो जायेंगे .... ऐसे में राज्य में जातीय संतुलन कायम नही हो पायेगा.... अतः पार्टी ऐसी सूरत में उनको काबिज कर कोई बड़ा जोखिम राजस्थान में मोल नही लेना चाहेगी......
पूर्व ऊप रास्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का नाम भी इस रेस में बना हुआ है ...नरपत के बारे में राजस्थान में एक किस्सा प्रचलित है ... मेरे राजस्थान के एक परम मित्र बताते है राजस्थान में राजनीती में आने से पहले नरपत बाबोसा से कहा करते थे" टिकेट नही दिलाया तो खाना छोड़ दूंगा" ... दामाद के हट को देखते हुए शेखावत अपने दामाद को राजस्थान की राजनीति में ले आए.... उम्र के इस अन्तिम पड़ाव पर भैरव बाबा नरपत सिंह राजवी को नेता प्रतिपक्ष के पद पर लाने की पुरजोर कोशिस कर रहे है..नरपत का युवा होना उनकी राह आसान बना सकता है ...बाबोसा के संघ से जनसंघ के दौर से रिश्तो के मद्देनजर नरपत के सितारे बुलंदियों में जा सकते है ...परन्तु नरपत की जनता में कमजोर पकड़ और पार्टी में उनके समर्थको की कमी एक बड़ी बाधा बन सकती है ... वसुंधरा को उनके पड़ से हटाने के लिए बाबोसा ने कुछ महीने पहले एक मुहीम चलाई थी... अब वसुंधरा की विदाई के बाद बाबोसा के सुर में भी नरमी आ गई है... पिछले कुछ दिनों से वह भाजपा में प्यार की पींगे बड़ा रहे है..... १५ वी लोक सभा में ख़ुद को पीं ऍम इन वेटिंग बनाने पर तुले थे पर इन दिनों भाजपा के साथ बदती निकटता किसी बड़े कदम की और इशारा कर रही है ...वह नरपत को राजस्थान में ऊँचा रुतबा दिखाना चाहते है... अभी तक उनकी राह का बड़ा रोड़ा महारानी बनी हुई थी पर अब महारानी के राजपाट के लुट जाने के बाद बाबोसा को अपने दामाद का रास्ता साफ़ होता नजर आ रहा है...संभवतया इस बार पार्टी और संघ जनसंघ के इस नेता की राय पर अपनी मुहर लगा दे...और नए नेता के चयन में सिर्फ़ शेखावत की चले.......
अगर वसुंधरा के खेमे से किसी की ताजपोशी की बात आती है तो दिगंबर सिंह का नाम भी सामने आ सकता है ... सूत्रों की माने तो महारानी की प्राथमिकता अपनी पसंद के नेता को प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठाने की है... इस बात का ऐलान वह अपने जाने से पहले ही कर रही थी ...उन्होंने राजनाथ से साफतौर पर कहा था वह तभी अपनी कुर्सी छोडेंगी जब उनकी मांगे मानी जायेगी .... उनकी पहली मांग में नए नेता का चयन उनकी सहमती से होना था....अब यह अलग बात है पार्टी में " आडवानी ब्रांड" में गिरावट आने से वसुंधरा के विरोधी नेता उनकी पसंद के नेता को राजस्थान में बैठाएंगे .....वसुंधरा खेमे के नेताओं में दिगंबर को लेकर आम सहमती बनाने में भी कई दिक्कते पेश आ सकती है...
इन सबके इतर कोई अन्य नाम भी"डार्क होर्स " के रूप में सामने आ सकता है...इन सबके इतर भी कोई अन्य नाम सामने आ सकता है ... माथुर के बाद जब चतुर्वेदी को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था तो किसी को उनकी ताजपोशी की उम्मीद नही थी... हाई कमान ने जब उनका नाम फाईनल किया तो सभी चौंक गए... किसी ने उनके अध्यक्ष बनने के विषय में नही सोचा था... पर संघ से निकटता उनके लिए फायेदेमंद साबित हुई थी... इसी प्रकार शायद इस बार नए नेता का चयन संघ की सहमती से हो इस संभावना से भी इनकार नही किया जा सकता.... राज्य में वसुंधरा समर्थक विधायको की बड़ी तादात देखते हुए वसुंधरा यह कभी नही चाहेंगी की नया नेता विरोधी खेमे का बनी...... परन्तु अगर राजनाथ और संघ की चली तो वसुंधरा के राजस्थान में दिन लद जायेंगे..... जिस तरह इस्तीफे को लेकर महीनो से वसुंधरा ने ड्रामे बाजी की उससे राजनाथ की खासी किरकिरी हुई है ....पूरे प्रकरण से यह झलका है की वसुंधरा किसी की नही सुनती है... आज वह पार्टी से भी बड़कर हो गई है... तभी वह राजनाथ से मिलने के बजाए आडवाणी से मिलना पसंद करती है...
बहरहाल जो भी हो महारानी मान गई है.... महारानी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.... साथ ही राजनाथ को पात्र लिखकर उनको हटाए जाने के निर्णय को चुनोती दे डाली है.....महारानी की विदाई के बाद उनके तेवरों को देखते हुए नए नेता की ताजपोशी आसान नही दिख रही है... नए नेता को जहाँ कार्यकर्ता , पार्टी, संगठन के साथ तालमेल बैठना है वही प्रदेश अध्यक्ष चतुर्वेदी के साथ भी...... यहाँ यह बताते चले चतुर्वेदी के साथ वसुंधरा के सम्बन्ध अच्छे नही रहे है .... बताया जाता है वसुंधरा समर्थक उनकी ताजपोशी को नही पचा पायेंगे... ऐसे में देखना होगा नए नेता के अध्यक्ष के साथ सम्बन्ध कैसे रहते है? इन सबके मद्देनजर राजस्थान में भाजपा की आगे की राह आसान नही दिखाई देती है ........?

Wednesday, October 28, 2009


भाजपा में फिर से बवाल.........
लंबे समय से थमी खामोशी....... लगता है अब थम चुकी है....... भाजपा में फिर से बवाल शुरू हो गया है....आर अस अस प्रमुख मोहन भागवत ने बीजेपी को कोमो थेरेपी की जरुरत बताकर बीजेपी को फिर से चौक्कान्ना कर दिया है ... राजधानी जयपुर में भागवत ने बीजेपी को मेडीसिन सर्जरी या कोमो थेरिपी की जरुरत बताया लेकिन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनकी बात को खारिज करते हुए कहा अब किसका दिमाग ख़राब हो गया है॥ भाजपा के नेतृत्वपरिवर्तन को लेकर संघ के बीच रस्सकश्ही चल रही थी लेकिन भागवत के इस ब्यान से फिर से कड़वाहट पैदा कर दी... नई दिल्ली में पार्टी के केन्द्रीय व्यापारी प्रकोष्ट द्वार संसद भवन में आयोजित धरना प्रदर्शन को संबोधित करने के बाद भागवत के इस सुझाव के बाद पुछा तो राजनाथ ने कहा यह किसी और का नही तो किसी पागल का काम ही हो सकता है ... आख़िर कब तक भाजपा में यह घमासान चलता रहेगा?




ललित कुचालिया......

Monday, October 12, 2009

सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ ?

विवेक मिश्रा

साथियों आज पत्रकारिता में सोर्स, जुगाड़ और माखन बाजी इतने प्रचलित शब्द हो गए है की बिना इन्हे जाने लगता है आप पूर्ण पत्रकार नही हो सकते कुछ आदि इमानदारो को पत्रकारिता करने की जगह मिलती भी है तो उन्हें वो जगह दी जाती है जन्हा वे एक टाइपिंग बाबू से ज़्यादा कुछ नही ,पत्रकारिता में नई पौध को कुछ आला मीडिया कर्मियों के द्बारा यह कहा जाता है सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ किया ,अब यह परिभाषा नई पौध को जेहन में डाल कर मीडिया फिल्ड में आना चाहिए ,देश के चार स्तंभों में हर स्तम्भ में अयोग्यो की सरकार है ,यह बात किसी से छुपी नही है बावजूद इसके की कुछ इमानदार और सच्चे लोग है जो देश को बचाए है मुझे कार्लायन के ये कथन याद आते है की विश्व में एक बुद्धिमान के साथ नौ मूर्ख लोग हमेशा रहते है ,फील्ड में आओगे तो पता चलेगा यह जुमला मीडिया के लिए आज टैग लाइन बन गयी है जो नई पौध के मानसिक शोषण से ज्यादा कुछ भी नही है ,मै मानता हूँ की मीडिया में पूरे विश्व में यही चल रहा है लेकिन चयन प्रक्रिया जो मुख्य आधार होता है किसी भी संस्थान को सृजित करके उचाइंयो पर ले जाने का वही गायब होती आज मीडिया के फील्ड में साफ़ दिखायी देती है ,और जब तक मीडिया अपनी चयन प्रक्रिया में सुधार कर योग्यता को तरजीह नही देगी तब तक मीडिया की छवि और कृति सुधर नही सकती और ख़बर एक मिशन कभी नही बन सकती ,और कुछ विश्व भर में बनी ये फिल्मे जो मीडिया कही मीडिया के बहादुरी की दास्ताँ बताती है तो कही मीडिया के अन्दर का सच आप चाहे तो इन्हे पढ़ कर देखे भी.............................

FILM- ALL THE PRESIDENTS MEN, DIRECTED BY-ALLEN PAKOOLA,
यह फ़िल्म वाटर गेट के स्कैंडल को दुनिया के सामने लाने में वाशिगटन पोस्ट के पत्रकारों कार्ल बर्नस्टाइन ,बोब वुडवर्ड की यात्रा की कहानी है डस्टिन हाफ मैन और रॉबर्ट रेडफोर्ड के अभिनय ने इस पूरी फ़िल्म को गहरे आयाम दिए है ,पत्रकारिता के गहरे गंभीर काम काम को सामने लाती यह एक बेहतरीन फ़िल्म है ।

FILM-A CRY IN THE DARK ,DIRECTED BY-FRED SHIVASKI,
मीडिया द्बारा ख़ुद जज बनने को कहती यह फ़िल्म मेरिल स्ट्रीप और सैम नील के अदभुत अभिनय को दिखाती है ,यंहा एक माँ के अपने बच्चे के मारे जाने का अपराधी साबित करता मीडिया है तो दूसरी तरफ़ एक माँ की पीड़ा और उसका मजबूत इरादा है एक सत्य घटना पर आधारित यह कहानी जीवन के बहूत से पहलूँ से साक्षात्कार कराती है

FILM-SHATTERD GLAAS,DIRECTED BY-BILE RE
रोलिंग स्टोन के पत्रकार स्टेवन ग्लास की जिन्दगी के उतार चढावो को दिखाती यह कथा ,सत्य घटना है रिपोर्टर को जब यह पता चलता है की उसका काम सच कम और झूठ पर ज्यादा आधारित है तो उसे समय की एक गहरी टूटन को दिखाती यह फ़िल्म पत्रकारिता के सभी पहलूँ को खूबसूरती से दिखाती है

FILM-THE FRONT PAGE,DIRECTED BY-BILEE BAILDER
सम्पादक और रिपोर्टर के रिश्ते और अखबार की सुर्खियों की तलाश पर तंजिया नज़र डालती यह फ़िल्म वाल्टर और जैक लेमन की जोड़ी ने खूब अच्छे से अभिनय किया है रिपोर्टर, सम्पादक के द्वारा दिए लालच में कैसे फसता है दिलचस्प तरीके से फिल्माई गयी है

FILM-NEW DELHI TIMES ,DIRECTED BY -ROMESH SHARMA
पत्रकारिता और राजनीति के गहरे रिश्तो की पड़ताल करती कहानी ,वर्तमान की तस्वीर साफ़ करती है कहानी का मूल ताकत की तलाश में इस्तेमाल होना बखूबी दिखाया गया है भारतीय कलाकार -शशिकपूर शर्मीला ,मनोहर सिंह ,कुलभूषण खरबंदा ने अपना शानदार अभिनय दिया है

FILM-THE KILLING FIELDS ,DIRECTED BY-RONALD JOF
कम्बोडिया में आतताई शासन के दौरान तीन पत्रकारों जिनमे एक कम्बोडियन एक अमेरिकन और एक ब्रिटिश है अनुभवों पर आधारित है आतंक और हत्याओं के बीच जीवन को सामने लाती है यह कृति

FILM-CITIZEN KEN ,DIRECTED BY -AARSAN VELS
विश्व सिनेमा में आर्सन वेल्स के द्बारा लिखित और अभिनीत भी है,व्यक्तित्व को परत पर परत जिस तरह से खोलती है वह एक चमत्कार की तरह दिखाई देता है ,यह फ़िल्म साईट एंड साउन्द पत्रिका के द्बारा विश्व की श्रेष्ठ फ़िल्म ठहराई गयी है

FILM -THE INSIDER ,DIRECTED BY-MICHEL MANअमेरिका के प्रसिद्ध प्रोग्राम 60 मिनटस की एक कहानी जिसमे तम्बाकू उद्योग का परदाफाश हुआ था को आधार बनाकर यह फ़िल्म बनायी गयी है

FILM-REDS,DIRECTED BY-VAAREN BITE पत्रकार जोन रीड की रुसी क्रान्ति पर लिखी पुस्तक (TEN DAYS THAT SHOOK THE WORD )पर आधारित है वामपंथी सोच और रूस के क्रांति की कथा बड़े सजीव तरीके से सामने लाता है

FILM -THE ABSENS OF MAILIS ,DIRECTED BY-SIDNEY POLAK

पाल न्यूमन के द्बारा अभिनीत यह फ़िल्म एक माफिया पुत्र को हत्या के इल्जाम में फ़साने की कहानी है अखबार की रिपोर्टर द्बारा अपनी कहानी को सच बनाने की कोशिशों में नैतिकता को धुंधलाती सीमओं का आख्यान है यह फ़िल्म

Saturday, October 10, 2009

बदलाव की बयार पर सवार भाजपा .............

भाजपा में आडवानी जी को लेकर एक बार फिर बहस चल रही है......८० के पड़ाव को पार कर चुके आडवानी की भूमिका क्या होगी इसका खाका संघ खीच चुका है .... २०१० की शुरुवात के आस पास पार्टी में उनकी भूमिका सीमित हो जायेगी ऐसी खबरे नागपुर से आ रही है.... इसी कारण आज आडवानी मीडिया में कोई भी बयान देने से परहेज कर रहे है .... क्या ऐसी उम्मीद कोई आडवानी सरीखे नेता से कर सकता है ...? लोक सभा चुनावो से पहले जो व्यक्ति अपने को पी ऍम इन वेटिंग के रूप में मीडिया में बड़ी जोर शोर के साथ पेश करता था साथ ही जो मनमोहन को कमजोर प्रधानमंत्री बताता था आज वह क्यों इतना असहाय हो गया है अब मीडिया में अपना मुह नही खोलता .... क्या एक हार ने आडवानी जी को इतना पंगु बना दिया है वह अब राजनीती के मैदान में वह पस्त हो गए है ....? ऐसे कई सवाल भाजपा से जुड़े लोगो के जेहन में भी आ रहे है....क्या इस बात की आप उम्मीद कर सकते है महीनो पहले जो आडवानी जी मनमोहन सरकार को आतंकवाद और आतंरिक सुरक्षा जैसे मुद्दे पर घेरा करते थे आज हार ने उनको कमजोर कर दिया है.... दरअसल ऐसा नही है ..... संघ के इशारो पर यह सब किया जा रहा है ... मोहन भागवत अब भाजपा को नए ढंग से संगठित करना चाहते है .... इस बात पर सभी ने हामी भर दी है ... बस राजनाथ के कार्यकाल के पूरा होने का इन्तजार है ... उसके बाद भाजपा को नए ढंग से संगठित करने की कवायद शुरू हो जायेगी.....संघ यह मान चुका है २ हारो के बाद पार्टी को नए सांचे में ढाला जाए .... कांग्रेस के प्रति बदने वाले युवाओ के आकर्षण को कम करने का नुस्का भी ढूँढ लिया गया है.... आने वाले नगर निकायों , विधान सभा के चुनावो में भाजपा बड़ा दाव युवाओ को टिकेट देकर खेलेगी ... पार्टी में आडवानी की सलाहकार की भूमिका रहेगी.... वैसे वह जल्द ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक के अवतार में नजर आयेंगे ॥ अब यह अलग बात है उनके मन में पी ऍम बन्ने की एक इच्छा और बनी हुई थी .... सूत्र बताते है आडवानी जी चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद अपनी इस इच्छा का इजहार करने से सीधे डर रहे थे ... इस दौरान अगर वह इसका इजहार कर देते तो सभी उनकी हसी उडाते अतः उन्होंने चुप रहना मुनासिब समझा ...उन्होंने इसके लिए अपनी पसंद के उम्मीद वारो को मन माकिफ पदों पर बैठाना शुरू कर दिया .... लेकिन संघ को इस बात की भनक लग गई जिस कारण उसने शिमला के चिंतन के बाद उनकी भूमिका को सीमित करने का फैसला लेना पड़ा ...आडवानी जी शुरू से भाजपा नेताओ के निशाने पर रहे है ... जसवंत , यशवंत , शौरी जैसे नेता बार बार इस बात को उठाते रहे है पार्टी में जवाबदेही तय नही की जाती जो सही नही है.... वह आडवानी जी को कठघरे में खड़ा करते रहे है.... इसी कारण संघ चाहता था आडवानी जी का नई भाजपा में कोई दखल नही हो ....वह भाजपा को नए नेताओं से संगठित करना चाहता था जिस कवायद में वह सफल साबित होता दिख रहा है ... बताया जाता है राजनाथ की विदायी के बाद नई भाजपा देखने को मिलेगी जहाँ आडवानी की धमाचौकडी का दखल नही होगा...इसी तर्ज पर राज्यों में भी अब युवा नेताओं को तरजीह दी जा सकती है .... अगर यह सब हुआ तो इसको भाजपा के भविष्य के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है ...संघ की दवा का असर धीरे धीरे होगा ..... रातो रात किसी चमत्कार की उम्मीद नही की जा सकती है...चमत्कार को सभी का नमस्कार करने में समय लगता है॥हर किसी का कोई न कोई ख़राब समय चलता है ... भाजपा भी आजकल इसी दौर से गुजर रही है... जल्द ही पार्टी इस बुरे दौर का अंत होगा ऐसी उम्मीद है .......... वैसे भी यह दुनिया उम्मीद पर ही तो कायम है ......
(हर्षवर्धन \प्रवीण परमार )

प्यारेलाल जी का निधन ... एक बड़े युग का अवसान....


प्यारेलाल खंडेलवाल मध्य प्रदेश भाजपा का पर्याय है ... उनके जाने के साथ ही मध्य प्रदेश में भाजपा के एक युग की समाप्ति हो गई... उन्होंने अपने जीवन की शुरूवात सिहोर जिले के एक छोटे से गाव चार मंडली से १९२९ में की ... आप बचपन से ही काफ़ी मेहनती थे...प्यारेलाल जी कम समय में संघ से जुड़ गए...बाद में संघ के प्रचारक भी बन गए ... प्यारेलाल जी मध्य प्रदेश में जन संघ के संस्थापक सदस्य भी रहे ॥ बाद में भाजपा के बन्ने पर वह भाजपा में चले गए॥ वह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे ... साथ में राज्य सभा सदस्य भी रहे ... उनका प्रदेश की राजनीति में बड़ा दखल था॥ या यू कहे प्रदेश में भाजपा का पौधा लगाया और उसको खाद पानी करके बड़ा किया कि आज प्रदेश में सरकार उसी की है॥ प्रदेश भाजपा में जब भी कोई संकट आया उससे उबरने में प्यारेलाल जी ने अपनी भूमिका निभाई.... पार्टी ने इतना बड़ा पद और सम्मान होने के बाद भी सिहोर जिले के विकास या प्रदेश के विकास में सहायक कोई काम उनके नाम नही है॥
उन्होंने देश की कम पार्टी की ज्यादा सेवा की... प्यारेलाल जी ने भाजपा और इस दुनिया से ऐसे समय में नाता तोडा जब वर्तमान में उनकी जरुरत पार्टी को थी ... भाजपा आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है ॥ उन्होंने कभी नही सोचा होगा जिस पौधे को वह लगा रहे है उसकी जड़ उन्ही की पार्टी के लोग काट डालेंगे॥ जहाँ एक तरफ़ पिछले चुनाव की हार का जिम्मा कोई लेने को तैयार नही है तो पार्टी के नेता अब पार्टी की रीति नीति पर सवाल खड़े कर रहे है .... आडवानी जी जो पी ऍम इन वेटिंग थे वह अभी भी पी ऍम इन वेटिंग बने है .... अपने आपको पी ऍम इन वेटिंग रखकर उन्होंने ऐसा गल लिया है जिसे न निगल सकते है न उगल सकते है॥ भाजपा के संस्थापको में कुछ का स्वर्गवास हो गया तो कुछ ने सन्यास ले लिया और कुछ नई पीड़ी की उपेक्षा के चलते पार्टी छोड़ रहे है या निकाले जा रहे है ... हाल ही में जसवंत सिंह के निष्काशन को अनुचित बताकर प्यारेलाल जी ने अपना मत साफ़ कर लिया ॥ उन्होंने यह बता दिया जिस पौधे को उन्होंने लगाया था उसे ऐसे ही सूखने नही देंगे... ऐसे संकट के समय में प्यारेलालजी की मौत ने भाजपा को अपाहिज बना दिया ॥ प्यारेलाल जी की मौत के साथ ही मध्य प्रदेश भाजपा में एक युग की समाप्ति हो गई... प्यारेलाल जी के स्थान की भरपाई करना भाजपा के लिए आसान नही होगा....

Thursday, October 8, 2009

चुनाव में सब नंगे उर्फ़ खूब बिके अखबार

राजीव यादव
पत्रकारिता में मील का पत्थर साबित हुए ‘स्वराज्य’ जिसके आठों संपादकों जिसमें कुछ को पत्रकारीय मूल्यों के लिए कैद तो कुछ को काले पानी तक की सजा हुयी के शहर इलाहाबाद में अखबार गलीजपन की हदें स्थापित कर रहे हैं। बीतें लोकसभा चुनावों में अखबारों ने पैसे लेकर खबरों को विज्ञापन के रुप में ही नहीं बल्कि खबरों व खबरों के स्थान के लिए प्रत्याशियों के सामने लाखों रुपये के पैकेज तक पेश किये। खुलेआम यह ऐलान किया कि बिना पैसा लिये खबर नहीं छापेंगे। चुनाव के परवान चढ़ने के बाद यह अभियान इतना तेज हो गया कि अखबारों का दूसरे अखबार से प्रतिस्पर्धा बस इसी के लिए रह गयी कि कौन कितना बड़ा पैकेज लिया। बौद्धिक विरासत की पहचान वाले इलाहाबाद की दोनों लोकसभा सीटों पर दैनिक जागरण और हिंदुस्तान सबसे ज्यादा पैकेज लेने वाल अखबारों में रहे। दैनिक जागरण जिसने ‘जन जागरण’ का ठेका लिया था ने कांग्रेस से बसपा में आये राजनीतिक गणितबाज अशोक बाजपेयी के सर्वसमाज के लिए अपने को उनके सुपुर्द कर दिया था। ऐसा नहीं कि दैनिक जागरण ने सिर्फ बाजपेयी की ही खबरों को पैसा लेकर छापा, उसने सबके पास अपनी नीलामी के पैकेज भेजे थे। जिसमें बाजपेयी सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले निकले। अखबारी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने 55 से 60 लाख रुपये खबरों के स्थान खरीदने के लिए दिये थे। दैनिक ने हद तो तब कर दी जब 14 अपैल की सतीश चंद्र मिश्रा की सभा की खबर को आधे पेज के विज्ञापन के रुप में छापा। जबकी अन्य समाचार पत्रों में यह खबरों के रुप में भले ही नीलामी में आवंटित जगह पर छपी। मीडिया के अंदरुनी जानकारों के मुताबिक चुनावों में बाजार गर्म होने के कारण इसकी कीमत एक से सवा लाख के तकरीबन थी। खबरों की नीलामी के इस खेल को प्रसिद्ध गांधीवादी और आजादी बचााओ आंदोलन के संयोजक बनवारी लाल शर्मा जनता के विवेक पूर्ण तरीके से सूचना पाने के हक को प्रभावित करने वाला मानते हैं। वे कहते हैं कि मीडिया में आए विदेशी निवेश ने हमारी पत्रकारिता को पराभव की ओर अग्रसर कर दिया है। मीडिया जिसकी जिम्मेदारी समाज निर्माण करना और तीनों स्तंभों की रखवाली करना था आज उसका काम सबको भ्रष्ट बनाने का हो गया है। आज जब पूरे विश्व में मंदी का ढिढोरा पीटा जा रहा है और छटनी की जा रही है तब यह अहम सवाल है कि आखिर चुनावों के कुछ महीनें पहले अखबारों ने कैसे अपने नए संस्करण शुरु किये। हिन्दुस्तान ने भी इस चुनावी महासमर में अपनी इलाहाबाद संस्करण की नयी दुकान खोली। सिविल लाइन्स स्थित काफी हाउस की बैठकों में इन दिनों इसी पर चर्चा चल रही है कि किसने कैसे कितना कमाया। पर हिन्दुस्तान के नए संस्करण की चर्चा उसकी खबरों को लेकर नहीं बल्कि उसके पैकेजों को लेकर है। इस का हिसाब हिन्दुस्तान को भविष्य में भुगतना पड़ेगा। क्योंकि अधिक प्रसार वाले अखबार तो चुनावों बाद भी बच जाएंगे क्योंकि उनकी जमीन पुरानी है। पर हिन्दुस्तान के साथ ऐसा नहीं होगा। चुनाव के दरम्यान अखबार के दफ्तर वार रुम में तब्दील हो गए थे जहां हर उम्मीदवार अपने ‘सामथ्र्य’ के हिसाब से धन दे रहा था। इस चुनाव में एक ‘गैर सरकारी’ संगठन के प्रत्याशी डा0 नीरज जिनके बस यही विचार हैं कि ‘देश खतरे में है’,‘मतदाता मेरा भगवान’ काफी चर्चा में है। लोग यह कह रहें हैं कि जब हर खबर बिक रही हो और उसको खरीद कर अपनी लोकप्रियता बढ़ाई जाने की आपा-धापी हो तो ऐसे लोग भी अपनी दुकान चलाने में लग जाते हैं। डा0 नीरज को मात्र 1563 वोट मिले थे पर चुनावों में हर दिन उनकी खबर रहती थी क्योंकि वे चुनाव नहीं बल्कि खबरों के लिए लड़ रहे थे। जितनी ज्यादा उनकी खबरे छपेगी उतना ज्यादा उन्हें बाद में ‘फंडिग’ होगी। जानकारों के मुताबिक इलाहाबाद में अमर उजाला ने इस बार पैसा नहीं लिया था। जिसका कारण पिछले विधानसभा चुनावों में उसने भाजपा का खूब प्रचार किया था और सरकार तक बनवा रहा था। पर नतीजों के बाद जहां भाजपा गर्त में चली गयी तो वहीं अमर उजाला की छवि भी बहुत खराब हुयी। अपनी गिरी हुयी साख को फिर से बरकरार करने कि लिए उसने अबकी बार खुलेआम तो खबर बेचने का काम नहीं किया। पर रिपोर्टरों ने जरुद कुछ किया। सबसे ज्यादा सर्कुलेशन की वजह से दैनिक जागरण ने इस चुनाव में तकरीबन दो से ढाई करोड़ का व्यापार इन दोनों सीटों पर किया। प्रबधन द्वारा आधिकारिक स्वीकृत के बाद भी प्रत्यक्ष और परोक्ष दो प्रकार का कारोबार हुआ। एक तो वह जो सीधे मालिकों के हाथों गया। दूसरा अच्छी खबरें लिखने और अच्छी फोटो के लिए काम कर रहे पत्रकारों ने अलग से दिहाड़ी वसूली। खबरें मुख्यतः दो प्रकार की थीं। एक वो स्थान जिसे प्रत्याशी अपने लिए आवंटित कराता था, वहां हूबहू जैसे वह लिखवाकर भेजता था वैसे ही चेप दी जाती थी। दूसरी वो खबरें जिसमें रिपोर्टर अपनी ‘विलक्षण प्रतिभा’ से रिपोर्टिंग कर किसी के पक्ष में तो किसी के खिलाफ माहौल बनाता था। दैनिक जागरण में इलाहाबाद लड़ रहे बसपा के अशोक वाजपेयी की तीन से चार खबरें लगती थीं तो वहीं सपा के रेवती रमण सिंह की एक या दो। इन दोनों की तुलना में भाजपा के योगेश शुक्ला और कांग्रेस के श्याम कृष्ण पाण्डेय नाम मात्र खबरें रहा करती थीं। तो वहीं कभी नेहरु का गढ़ रहे फूलपुर से बसपा के कपिल मुनि करवरिया खबरों के मामले में सपा के श्यामा चरण से डेढ़ गुना आगे थे। भाजपा के करण सिंह पटेल और कांग्रेस धर्मराज पटेल भी नाम मात्र का ही स्थान खबरों में पाए। इन सभी प्रत्याशियों के चुनाव परिणामों पर अगर नजर डाली जाय तो यह निष्कर्ष निकलता है कि खबरों में इनकी उपस्थिति और परिणामों में जमीन आसमान का अंतर है। फूलपुर से लड़ रहे अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनेलाल पटेल और अपना दल के बागी उम्मीदवार प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खबरों और चुनावों परिणामों के काफी अंतर दिखा। प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की जहां खूब खबरें रहा करती थीं तो वहीं अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद सोनेलाल खबरों में नदारद थे। भले ही इसकी जातीय गणित के चलते सोनेलाल को आवश्यकता न थी। इतना ही नहीं प्रदीप के पक्ष में सोनेलाल की नकारात्मक रिपोर्टिंग की गयी। जबकि सोनेलाल को 76699 मत मिले तो वहीं प्रदीप को 1438।दैनिक जागरण ने कपिल मुनि करवरिया जिनकी बालू माफिया की छवि है का मेकओवर करने के लिए उन पर कई फोटो फीचर छापे। जिसमें कभी वो घर में पूजा करते तो कभी परिवार में शांत भाव में बैठे दिखाई जो उनकी वास्तविक छवि के एकदम विपरीत है और जिसका चुनावी रिपोर्टिंग से कोई मतलब नहीं दिखता। अखबारों ने बसपा की भाई चारा समितियों का जो पुलिंदा बाधा था उसने चुनाव आते-आते अपना भण्डा खुद फोड़ दिया। मतदान के दिन ब्राह्मण भाई-चारा समिति के अध्यक्ष अक्षयवर नाथ पाण्डेय को भुंडा गांव के दलितों ने जबरन अशोक बाजपेयी के पक्ष में वोट डलवाने के चलते नंगाकर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। दरअसल ये जो भी प्रत्याशी थे इनको अपना मेकओवर इसलिए भी करवाना पड़ा क्योंकि कोई छवि ही नहीं थी। जहां करवरिया की पहचान बालू माफिया की थी तो वहीं अशोक वाजपेयी की पहचान कांग्रेस के भगौड़े की थी।अखबारों में चल रहीं इस रिपोर्टिंग के खिलाफ डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ही एक ऐसा अखबार था जिसने मोर्चा खोला। 29 मार्च को ‘मीडिया के घोड़े भी चुनावी मैदान में’ सुर्खियों से छपी खबर ने इस गोरख धंधे का खुलासा किया।