Saturday, October 10, 2009

बदलाव की बयार पर सवार भाजपा .............

भाजपा में आडवानी जी को लेकर एक बार फिर बहस चल रही है......८० के पड़ाव को पार कर चुके आडवानी की भूमिका क्या होगी इसका खाका संघ खीच चुका है .... २०१० की शुरुवात के आस पास पार्टी में उनकी भूमिका सीमित हो जायेगी ऐसी खबरे नागपुर से आ रही है.... इसी कारण आज आडवानी मीडिया में कोई भी बयान देने से परहेज कर रहे है .... क्या ऐसी उम्मीद कोई आडवानी सरीखे नेता से कर सकता है ...? लोक सभा चुनावो से पहले जो व्यक्ति अपने को पी ऍम इन वेटिंग के रूप में मीडिया में बड़ी जोर शोर के साथ पेश करता था साथ ही जो मनमोहन को कमजोर प्रधानमंत्री बताता था आज वह क्यों इतना असहाय हो गया है अब मीडिया में अपना मुह नही खोलता .... क्या एक हार ने आडवानी जी को इतना पंगु बना दिया है वह अब राजनीती के मैदान में वह पस्त हो गए है ....? ऐसे कई सवाल भाजपा से जुड़े लोगो के जेहन में भी आ रहे है....क्या इस बात की आप उम्मीद कर सकते है महीनो पहले जो आडवानी जी मनमोहन सरकार को आतंकवाद और आतंरिक सुरक्षा जैसे मुद्दे पर घेरा करते थे आज हार ने उनको कमजोर कर दिया है.... दरअसल ऐसा नही है ..... संघ के इशारो पर यह सब किया जा रहा है ... मोहन भागवत अब भाजपा को नए ढंग से संगठित करना चाहते है .... इस बात पर सभी ने हामी भर दी है ... बस राजनाथ के कार्यकाल के पूरा होने का इन्तजार है ... उसके बाद भाजपा को नए ढंग से संगठित करने की कवायद शुरू हो जायेगी.....संघ यह मान चुका है २ हारो के बाद पार्टी को नए सांचे में ढाला जाए .... कांग्रेस के प्रति बदने वाले युवाओ के आकर्षण को कम करने का नुस्का भी ढूँढ लिया गया है.... आने वाले नगर निकायों , विधान सभा के चुनावो में भाजपा बड़ा दाव युवाओ को टिकेट देकर खेलेगी ... पार्टी में आडवानी की सलाहकार की भूमिका रहेगी.... वैसे वह जल्द ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक के अवतार में नजर आयेंगे ॥ अब यह अलग बात है उनके मन में पी ऍम बन्ने की एक इच्छा और बनी हुई थी .... सूत्र बताते है आडवानी जी चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद अपनी इस इच्छा का इजहार करने से सीधे डर रहे थे ... इस दौरान अगर वह इसका इजहार कर देते तो सभी उनकी हसी उडाते अतः उन्होंने चुप रहना मुनासिब समझा ...उन्होंने इसके लिए अपनी पसंद के उम्मीद वारो को मन माकिफ पदों पर बैठाना शुरू कर दिया .... लेकिन संघ को इस बात की भनक लग गई जिस कारण उसने शिमला के चिंतन के बाद उनकी भूमिका को सीमित करने का फैसला लेना पड़ा ...आडवानी जी शुरू से भाजपा नेताओ के निशाने पर रहे है ... जसवंत , यशवंत , शौरी जैसे नेता बार बार इस बात को उठाते रहे है पार्टी में जवाबदेही तय नही की जाती जो सही नही है.... वह आडवानी जी को कठघरे में खड़ा करते रहे है.... इसी कारण संघ चाहता था आडवानी जी का नई भाजपा में कोई दखल नही हो ....वह भाजपा को नए नेताओं से संगठित करना चाहता था जिस कवायद में वह सफल साबित होता दिख रहा है ... बताया जाता है राजनाथ की विदायी के बाद नई भाजपा देखने को मिलेगी जहाँ आडवानी की धमाचौकडी का दखल नही होगा...इसी तर्ज पर राज्यों में भी अब युवा नेताओं को तरजीह दी जा सकती है .... अगर यह सब हुआ तो इसको भाजपा के भविष्य के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है ...संघ की दवा का असर धीरे धीरे होगा ..... रातो रात किसी चमत्कार की उम्मीद नही की जा सकती है...चमत्कार को सभी का नमस्कार करने में समय लगता है॥हर किसी का कोई न कोई ख़राब समय चलता है ... भाजपा भी आजकल इसी दौर से गुजर रही है... जल्द ही पार्टी इस बुरे दौर का अंत होगा ऐसी उम्मीद है .......... वैसे भी यह दुनिया उम्मीद पर ही तो कायम है ......
(हर्षवर्धन \प्रवीण परमार )

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